मोबाइल गेम की लत लोगों के लिए खतरनाक होती जा रही है। खासकर बच्चों के लिए। ऐसा ही एक मामला चकरभाठा क्षेत्र में सामने आया है। जहां फ्री फायर गेम खेलते हुए एक 14 वर्षीय छात्र की हादसे में मौत हो गई। 9वीं कक्षा में पढ़ने वाला यह छात्र मोबाइल गेम में इस कदर डूबा था कि उसे अपने आसपास का ध्यान ही नहीं रहा। चलते-चलते वह रोड पर अचानक फिसला और सिर पर गंभीर चोट आने से उसकी मौत हो गई।

मिली जानकारी के अनुसार, मृतक छात्र आदित्य लखवानी चकरभाठा बस्ती का निवासी था और वह अपने बड़े भाई राहुल लखवानी के साथ रात में दोस्तों के संग टहलने निकला था। इस दौरान सभी दोस्त मोबाइल फोन पर ऑनलाइन फ्री फायर गेम खेल रहे थे। आदित्य भी गेम खेलने में इतना लीन हो गया था कि चलते हुए वह सड़क पर फिसल पड़ा। गिरने के दौरान उसके सिर में गहरी चोट आई। आसपास मौजूद लोगों और उसके भाई ने तत्काल उसे बिल्हा के अस्पताल पहुंचाया। वहां से हालत गंभीर देखते हुए डॉक्टरों ने सिम्स रेफर किया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

सिम्स में डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। मृतक के बड़े भाई राहुल लखवानी ने बताया कि वे लोग घूमते हुए गेम खेल रहे थे। उसी दौरान आदित्य ने भी उसे फ्री फायर ऑन करने के लिए कहा और गेम में व्यस्त हो गया। अचानक हादसा हुआ और आदित्य गिर पड़ा। इसके बाद सभी घबरा गए और उसे लेकर अस्पताल दौड़े।

हादसे से कुछ देर पहले पुलिस की पेट्रोलिंग टीम ने भेजा था घर

मृतक के बड़े भाई राहुल ने बताया कि, देर रात तक घूमते देखकर पुलिस की पेट्रोलिंग टीम ने उन्हें टोका। उन्हें घर जाने की सलाह दी। इस पर वो सभी अपने घर ही जा रहे थे। तभी रास्ते में यह हादसा हो गया और आदित्य की जान चली गई।

नशा मुक्ति अभियान की ही तरह मोबाइल की लत का भी इलाज जरूरी

मादक पदार्थों की लत की ही तरह वर्तमान में लोगों में मोबाइल की लत बढ़ती जा रही है। मोबाइल गेम, खासकर मारधाड़ वाले ऑनलाइन गेम, बच्चों और किशोरों की मानसिक स्थिति पर गहरा असर डालते हैं। इससे ध्यान बंटना, चिड़चिड़ापन और व्यसन की स्थिति में पहुंच जाने की स्थिति बनती जा रही है। लिहाजा इस लत का ठीक उसी प्रकार इलाज जरूरी हो गया है, जिस प्रकार नशा मुक्ति के लिए हो रहा है।

इस हादसे ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि माता-पिता और समाज को बच्चों के मोबाइल उपयोग पर विशेष ध्यान देना होगा। जो बच्चे या किशोर मोबाइल पर इस तरह के गेस लगातार खेल रहे हैं, उन्हें समय रहते सावधान होना होगा। इसके लिए मनोचिकित्सकों से काउंसिलिंग भी कराई जा सकती है, जिससे स्थाई समाधान मिल सके। - डॉ. सतीश श्रीवास्तव, वरिष्ठ मनोचिकित्सक बिलासपुर।