गुरु दत्त की 100वीं जयंती के उपलक्ष्य में 8 से 10 अगस्त तक 'प्यासा' से 'चौदहवीं का चाँद' तक की

मुंबई। इस अगस्त, फिल्म प्रेमियों की एक नई पीढ़ी को सिनेमा के सबसे महान जादूगर गुरु दत्त को बड़े परदे पर देखने का एक दुर्लभ अवसर मिलने जा रहा है। गुरु दत्त के जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में अल्ट्रा मीडिया एंड एंटरटेनमेंट ग्रुप और एनएफडीसी-एनएफएआई के सहयोग से उनकी सबसे प्रतिष्ठित फिल्मों का एक भव्य थियेट्रिकल रिट्रोस्पेक्टिव देशभर में आयोजित किया जा रहा है। इन फिल्मों को सावधानीपूर्वक रिस्टोअर कर आज के दर्शकों के लिए नए रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। 8 से 10 अगस्त तक देशभर के 250 से अधिक सिनेमाघरों में गुरु दत्त की रिस्टोअर की गई क्लासिक फिल्में दिखाई जाएंगी, जिनमें 'प्यासा', 'आर पार', 'चौदहवीं का चाँद', 'मिस्टर एंड मिसेस 55' और 'बाज़' शामिल हैं।
“गुरु दत्त की फिल्में समय की सीमाओं से परे ऐसे सिनेमाई रत्न हैं
यह विशेष आयोजन सिनेमा प्रेमियों, फिल्म छात्रों और आज के युवा दर्शकों को गुरु दत्त की काव्यात्मक गहराई, दृश्यात्मक सुंदरता और कालातीत कहानी कहने की शैली को 4K स्पष्टता में अनुभव करने का आमंत्रण देता है। इन फिल्मों के अधिकार अल्ट्रा मीडिया एंड एंटरटेनमेंट ग्रुप के एमडी और सीईओ सुशीलकुमार अग्रवाल के पास हैं। उन्होंने कहा, “गुरु दत्त की फिल्में समय की सीमाओं से परे ऐसे सिनेमाई रत्न हैं, जिन्होंने पीढ़ियों तक फिल्मकारों और दर्शकों दोनों को गहराई से प्रभावित किया है। यह पहल केवल गुरु दत्त की विरासत को नमन करने का एक माध्यम नहीं, बल्कि सिनेमा के ज़रिए पीढ़ियों को जोड़ने वाली एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक पहल भी है। हमें गर्व है कि हम उनकी क्लासिक फिल्मों को रिस्टोअर संस्करणों में प्रस्तुत कर रहे हैं, ताकि पुराने प्रशंसक भी इस जादू को दोबारा जी सकें और नई पीढ़ी भी इसे पहली बार बड़े परदे पर महसूस कर सके।”
एक अनमोल विरासत को सहेजने का प्रयास
एनएफडीसी के प्रबंध निदेशक प्रकाश मगदुम ने कहा, “गुरु दत्त की फिल्मों को रिस्टोअर करना केवल पुरानी रीलों को नया जीवन देने का काम नहीं है, बल्कि यह भारतीय सिनेमा की आत्मा को परिभाषित करने वाली एक अनमोल विरासत को सहेजने का प्रयास है। ये फिल्में सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार की 'राष्ट्रीय फिल्म धरोहर मिशन' के अंतर्गत रिस्टोअर की गई हैं, जिससे गुरु दत्त की कालातीत दृष्टि आज के दर्शकों तक ही नहीं, आने वाली पीढ़ियों तक भी उसी असर के साथ पहुँचती रहे।”
काव्यात्मक गहराई आज भी उतनी ही असरदार
इस खास श्रृंखला की अगुवाई करती है प्यासा (1957), जिसे भारतीय सिनेमा की सबसे महान फिल्मों में से एक माना जाता है। यह फिल्म एक ऐसे हताश कवि की कहानी बयां करती है जो भौतिकतावादी दुनिया में अपनी जगह तलाश रहा है। इसकी आत्मा को छू लेने वाली संगीत रचनाएं और काव्यात्मक गहराई आज भी उतनी ही असरदार हैं।आर पार (1954) 'बॉम्बे न्वार' शैली में बनी एक स्टाइलिश फिल्म है, जो रोमांस, रहस्य और यादगार गीतों के साथ अपराध और पश्चात्ताप की दिलचस्प कहानी को पिरोती है।चौदहवीं का चाँद (1960) लखनऊ की नवाबी तहज़ीब की पृष्ठभूमि पर आधारित एक मार्मिक प्रेम और दोस्ती की कहानी है, जिसे टेक्नीकलर में बेहद खूबसूरती से फिल्माया गया है। इसका शीर्षक गीत आज भी शिद्दत से याद किया जाता है।मिस्टर एंड मिसेस 55 (1955) एक हल्की-फुल्की रोमांटिक कॉमेडी है, जो आज़ादी के बाद के भारत में आधुनिकता और लैंगिक भूमिकाओं पर तीखे लेकिन मनोरंजक ढंग से सवाल उठाती है।और अंत में बाज़ (1953), जो गुरु दत्त के निर्देशन की पहली फिल्म थी।यह ऐतिहासिक साहसिक फिल्म ब्रिटिश राज के दौर की पृष्ठभूमि पर आधारित है, जो गुरु दत्त की प्रारंभिक निर्देशन शैली में उनकी नाटकीय दृष्टि और कहानी कहने की क्षमता को दर्शाती है।
पूरी निष्ठा और संवेदनशीलता के साथ तैयार किया
इन सभी फिल्मों के माध्यम से दर्शकों को गुरु दत्त की विलक्षण प्रतिभा की गहराई से झलक मिलती है। वे एक ऐसे फिल्मकार थे जिनकी भावनात्मक सच्चाई, सिनेमाई सौंदर्य और कालजयी दृष्टि आज भी नई पीढ़ियों को प्रेरित करती है और उनसे संवाद करती है। यह शताब्दी आयोजन, जिसे 'अल्ट्रा मीडिया' ने पूरी निष्ठा और संवेदनशीलता के साथ तैयार किया है, गुरु दत्त को समर्पित एक सच्चा सम्मान है। यह सिनेमा प्रेमियों के लिए एक दुर्लभ अवसर है, जब वे उस कालातीत दृष्टिकोण और काव्यात्मक कथा शिल्प से फिर एक बार रूबरू हो सकेंगे, जिसने गुरु दत्त को भारतीय सिनेमा की दुनिया में एक अमर पहचान दिलाई।